Thursday 25 June 2009

ये है रास्ते झिंदगी के जिस पे ना चाहते भी सब चलते है और चाह के भी ..उम्मीदे बहोत है झिंदगी के रास्तो से क्यो की हर मोड़ यहाँ अजनबी है। लाखो लोग है इस राह में । कहने को कई है अपने और कई अजनबी । पर है सवाल वही कौन अपने और कौन अजनबी । कई बार लगता है किसी अजनबी को मिल के अपना सा तो कई अपने होते है अजनबी ...........
शरद आचार्य

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