जा रहा था मंजिल की और रास्ता भटक गया । धुन्धने निकला रास्ता तो कही पे फस गया । चलता रहा उन राहो पे मंजिल को धुन्ध्ते । कटता गया रास्ता न मिली मंजिल । फ़िर जा के सोचा कोन सी है मेरी मंजिल । इस जहाँ में अगर मंजिल धुंध ली तो क्या बचेगा झिंदगी में । वही पे राह में सोचा । मत सोचो मंजिल को । चलते रहो नए कारवां बना के । जब मिलनी होगी मंजिल मिले । क्यो बिगाडे इस सफर का मज़ा उसे सोचते हुए .....
शरद आचार्य
Saturday 11 July 2009
Friday 10 July 2009
समजना तो चाहा हम ने इस जहाँ को । और चाहा ये भी समजे हमें । न समाज पाए हम इसे न वो समजा हमे । शिकवे शिकायत हमेशा हमें भी और उसे भी । एक दुसरे की झरूरत हमें भी उसे भी । क्यो नही समाज पाते हम एक दुसरे को क्या इतनी मुश्किल बात है । सीधी सी एक बात है । दोनों के अपने ठाठ है ।
बस ख्वाहिश है मन में एक । जहाँ न समजे हमे तो कोई बात नही । जहाँ में कोई तो हो ऐसा जो समजे हमें ।
शरद आचार्य
बस ख्वाहिश है मन में एक । जहाँ न समजे हमे तो कोई बात नही । जहाँ में कोई तो हो ऐसा जो समजे हमें ।
शरद आचार्य
Thursday 9 July 2009
भगवान ने बनाया ये खुबसूरत जहाँ । फ़िर बनाये ये हरेभरे जंगल । ये खुबसूरत नदिया । और इन खूबसूरती को महसूस करने और जहाँ को और सुंदर और हरा भरा बनाने भगवान ने बनाये पंछी और खुबसूरत जानवर । जिन्हें एक चक्र में झिंदगी दी और उन्होंने उस चक्र को निभाया भी । फ़िर भगवान को लगा खूबसूरती ज्यादा हो गई बहोत अच्छा वातावरण बन रहा है । तो फ़िर भगवान ने इंसान को बनाया । जिस ने हर खूबसूरती को बिगड़ना शुरू किया ॥ हरे भरे जंगल गायब हो रहे है । नदिया प्रदूषित या गायब हो रही है । पंछी इंसानों के खाने में या शौख में ख़तम हो रहे है। जानवरों का चक्र ख़तम हो गया अब वो भी जो जहा मिले खा रहे है ।
ये सब देख के एक गाना था । दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई .दुनिया बनाई तो बनाई इंसान को क्यो बनाया ..........
sharad acharya
ये सब देख के एक गाना था । दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई .दुनिया बनाई तो बनाई इंसान को क्यो बनाया ..........
sharad acharya
Tuesday 30 June 2009
आसमान में काले बादल मन को लुभाते है । बरसात की वो बुँदे जी को ललचाती है । दिल में एक कशक सी उठती है । रहो में जब चलो हलकी बरसतो में हर खुबसूरत चीज़ और खुबसूरत हो जाती है । वो पेड वो पौधे बरसात में धुल के और भी हसीं हो जाते है रास्तो पे जब बुँदे गिरती है जेसे रस्ते चमक जाते है । वो बारिश में भीग ने से बचाते हुए लोग ( लड़किया ) । आधे भीगे और भी हसीं नज़र आते है। भगवान .रखना हमेशा ऐसी महेरबानी इस दुनिया में । इस खुबसूरत जहाँ को और खुबसूरत बनाके
शरद आचार्य
शरद आचार्य
Monday 29 June 2009
वो बारिश के बूंदों के आते ही .गर्मी में राहत मिलना। वो मिटटी में पानी के मिलते ही भीनी सी खुशबु आना। वो रास्तो के खड्डो में पानी का जमा हो जाना थोडी ज्यादा बारिश आते ही वो रास्तो का डूब जाना वो रेल सेवा ओ पे असर वो आम आदमी की स्लो ज़िन्दगी वो हर ज्यादा बारिश में दिलो में डर बाढ़ का । बारिश का मज़ा न लेके भागते हुए लोग डर के मारे कांपते हुए लोग । वो हर बारिश में लाइट और फ़ोन का बंध हो जाना । और थोडी बारिश भी जो पुरी दुनिया के लिए मज़ा है वो यहाँ के लोगो के लिए सज़ा बन जाना
यही है मुंबई मेरी जान
शरद आचार्य
यही है मुंबई मेरी जान
शरद आचार्य
Sunday 28 June 2009
बेठे थे किनारे पे समुंदर के सामने । उठी लहरे दिल में उन की याद में । जेसे लहरे टकराती है समंदर के की किनारे से । वो भी आए थे जिंदगी में ऐसे ही हमारे । लहरे चली जाती है निसान छोड़ के । एक और लहर आती है उन निशानों को मिटाने । एक लहर आई थी जिंदगी में मेरे भी । निशान छोड़ गई अपने कितने आज भी जिन्दा हू उन निशानों के साथ उम्मीद में के उनको मिटने वाली कोई लहर आए ..........
Thursday 25 June 2009
जब जब आती है उनकी याद ... दिल को समजता हू तब तब न कर उनको याद ॥ जो गए है इस झिंदगी से हमें अजनबी बना के ... मूड के भी देखा नही कभी ..किस हाल में है .... पर दिल हमेशा करता है दुआ वो रहे सलामत हमेशा .... चाहे की है बेवफाई मुज से उन्होंने ....दिल तोडा है ..फ़िर भी ये दिल करता है दुआ उनसे न करे कोई बेवफाई न तोडे दिल उसका ..... हम ने तो सह लिए ये गमखुदा न देना ऐसे गम कभी उसको .........
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